एक शाम तनहा सी
एक शाम तनहा सी कुछ पूछती मुझसे,
पाकर मुझे खामोश वो जूझती मुझसे।
है लब पे तो हंसी
पर आँखें क्यों है नम,
तू खोई है कहाँ है
है क्या तुझे कोई गम।
ठहरी हुईं पलके निशब्द क्यों हैं शब्द,
दिल में है इतना कुछ खामोश क्यों है लव्ज़।
दिल का ये समंदर
उफान भर रहा,
आँखों की नमी की
पहचान बन रहा।
मैं और तनहा तू, हम दोनों हैं साथी,
मैं वक्त की कश्ती तू बन मेरी मांझी।
ये वक्त की नईया
बोझिल सी लग रही,
तेरी खामोशी से
चोटिल सी लग रही।
मैं वक्त की करवट पल मे हूँ बदलती,
तेरी हंसी का मोल मैं तुझसे पूछती।
एक बार खुशी से
कर मुझसे आलिंगन,
आँखें तो पढ़ चुकी
पढ़ लूँगी तेरा मन।
(अन्नु मिश्रा)
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