मंगलवार, 17 मई 2022

दो लब्ज़ की बातें

 




दो लब्ज़ की बातेंकुछ प्यार के क़िस्से

थी ज़िंदगी उलझीइस दो जहां में ही...

 

 सोचते थे हमकि ज़िंदगी क्या है,

बस ख़्वाहिशों के घर में रहते थे सुकून से। 

 

उड़ान भरते थेसपनों की ऊँची सी,

अरमान रखते थे इठलाती तितली सी। 

 

एक मोड़ आया यूँबन कर तूफ़ान सा, 

उजड़ा घरोंदा यूँमिट्टी के टीले सा।  

 

ये ख़्वाहिशेंसपनें सब ख़ाक हो गए,

इठलाती तितली के अरमान जल गए। 

 

अब सोचते हैं हम कि ज़िंदगी क्या है,

अब जानते हैं हम दो लब्ज़ झूठे हैं। 

 

 दिल मचलता है  क़िस्से होते हैं,

अब रात दिन हम बस "सच" में जीते हैं...

 

अब रात दिन हम बस "सच" में जीते हैं।

 

  • अन्नु मिश्र

 

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