न चाहो उस भरोसे को जो दिल को तो
न मानो उन कसीदों को जो सच को मो
नहीं मुमकिन हमेशा वक़्त का किस्मत के संग होना,
यहाँ हर छोर मंज़िल का ठिकाना मो
न चाहो उन निगाहों को जो तुम पर
न माँगों उस मोहब्बत को जो दो प
पता न दो उम्मीदों को कभी दिल से गुजरने का,
ये दुनिया आंक़िलों की है, ये दि
- अन्नु मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें