मंजिलें...................
सभी की हैं
अपनी-अपनी,
किसी की
तय हैं तो कोई तय कर रहा है,
पर मंजिलें
सभी की हैं अपनी-अपनी।
रास्ते.....
बदलते हैं,
सिमटते हैं, फैलते हैं,
पर चलते रहते हैं मंजिल की तलाश
में,
हर मोड पर भरमाते हैं कुछ रास्ते,
मंजिलों का आकार लेकर,
राही को रोकते हैं, आगे
जाने पर टोकते हैं,
थामते हैं अपनी बाहों की शिकंज
में,
अपने आगोश में मंजिलों का रूप
लेकर,
राही.......
जो मुसाफिर नहीं है,
छलावा मंजिलों पर रुकना उसका
मुनासिब नहीं है,
वो तोडता है बंधनों को, छोडता
है बाहों को,
बढता है उस मोड से आगे उन रास्तों
पर,
जो केवल रास्ते हैं, मंजिल
नहीं है,
चलता रहता है अपनी मंजिल की तलाश
में,
क्योंकि...
मंजिलें सभी की हैं अपनी-अपनी,
किसी की तय है, तो
कोई तय कर रहा है....
-अन्नु मिश्र