ज़िंदगी चल तो रही
है
पर एक कमी सी है,
कुछ खो गया है शायद
तलाशते हुए तुम को
अपनी राहों में
या फिर भूल गई हूँ
तुम्हारी मुस्कुराहट
का इंतज़ार करते-करते
वो जो एक कमी सी है,
ख़ाली सा है
अंदर-अंदर,
क्यों याद नहीं है
इस याद में
कि कब देखा था
आख़िरी बार
तुमने प्यार से,
कब बनी थी प्यार की
खूबसूरत तस्वीर
तुम्हारी आँखों में,
जिसका एहसास तो अब
भी है,
पर अस्तित्व कुछ
धुंधला गया है,
शायद अरसा हो गया
चाहत कि इस बुत से
धूल को साफ़ किए हुए,
वो जो अंदर टूटा सा
लग रहा था
दिखने लगा है अब
आइने में
और इन किताबों के
पन्नों से झाँकती हुई
लम्हों की रोशनी में,
कि खुद को खो दिया
है शायद
तुमको अपना बनाने
में
और अब जब तुम तुम
नहीं हो
न जाने क्यों मैं
मैं नहीं बन पा रही हूँ…...
-अन्नु मिश्र
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