गिर कर चलना सीखा
मैंने,
खोकर पाना सीखा
मैंने,
भावी सुख के झूठे
भ्रम में,
हालतों के हर एक
श्रम में,
आरोही - अवरोही क्रम
में,
जो-जो सिखलाया तूने
जीवन वो-वो सीखा
मैंने,
गिर कर चलना सीखा
मैंने।
ग़म की आँधी,
दुःख के बादल,
गरजे बरसे चले गए सब,
तूफ़ानी मौसम से
लड़कर,
अंगारों के पथ पर
चलकर,
जीवन की ही डोर पकड
कर,
फिर से संभलना सीखा
मैंने,
जो जो सिखलाया तूने
जीवन वो-वो सीखा
मैंने
गिर कर चलना सीखा
मैंने।
-अनु मिश्र
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