ए यार! हम दोस्त ही अच्छे थे
हम तुम कुछ क़िस्से बुनते तो थे
संग चाय की चुस्की के हंसते तो थे
ए यार! हम दोस्त ही अच्छे थे।
मेरी अल्हड़ सी अठखेलियों को
मेरी बेतुकी बातों को
मेरे अनबुझे ज़स्बातों को
बिन कहे तुम समझते तो थे।
ए यार! हम दोस्त ही अच्छे थे।
कभी दिन में कभी रातों को
मेरी ज़िद भरी मुलाक़ातों को,
बिन माँगी हर मुरादों को
तुम पूरा करते तो थे।
ए यार! हम दोस्त ही अच्छे थे।
अहसास जो बदल गए मेरे
अंदाज़ बदल लिए तुमने,
अब कही हुई बातें भी
तुम्हें समझ न आती हैं।
मेरी ज़िद भरी मुलाक़ातें भी
तुम्हें अब नहीं भाती है,
होकर भी हम पास,
अब पास नहीं हैं
कहते थे तुम हम हैं ख़ास,
पर हम ख़ास नहीं हैं।
बिन वादे भी हम दोनों
कितने सच्चे थे।
है यार! हम दोस्त ही अच्छे थे।
-अन्नू मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें