शनिवार, 10 सितंबर 2022

हम दोस्त ही अच्छे थे

 














 यारहम दोस्त ही अच्छे थे

हम तुम कुछ क़िस्से बुनते तो थे,

संग चाय की चुस्की के हंसते तो थे 

 यारहम दोस्त ही अच्छे थे। 


मेरी अल्हड़ सी अठखेलियों को

मेरी बेतुकी बातों को 

मेरे अनबुझे ज़स्बातों को 

बिन कहे तुम समझते तो थे।

 यारहम दोस्त ही अच्छे थे।


कभी दिन में कभी रातों को 

मेरी ज़िद भरी मुलाक़ातों को,

बिन माँगी हर मुरादों को 

तुम पूरा करते तो थे। 

 यारहम दोस्त ही अच्छे थे।


अहसास जो बदल गए मेरे 

अंदाज़ बदल लिए तुमने,

अब कही हुई बातें भी

तुम्हें समझ  आती हैं।

मेरी ज़िद भरी मुलाक़ातें भी 

तुम्हें अब नहीं भाती है,

होकर भी हम पास,

अब पास नहीं हैं

कहते थे तुम हम हैं ख़ास,

पर हम ख़ास नहीं हैं।

बिन वादे भी हम दोनों

कितने सच्चे थे।

है यारहम दोस्त ही अच्छे थे।


-अन्नू मिश्र


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