शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

किस डगर पर




ये चलते चलते किस डगर पर 

राहें लाईं है हमें

जहां है शून्यता सी प्रतिपल 

हृदय की भावनाओं में।

  खिलती मुस्कुराहट है 

 कोई दुःख पिघलता है

 मन की वेदना संवेदना को 

आह मिलता है।

हो तुम भी और मैं भी हूँ,

नहीं किरदार बदले हैं

कहानी है वही अब भी,

 कोई दृश्य पलटे हैं।

मगर तुम भी कहीं गुम हो

हूँ खोई-खोई सी मैं भी,

निगाहें फेरते हो तुम

नज़र तकती नहीं मैं भी।

 कोई बोल हिलते हैं

 कोई शब्द मिलता है,

ये अपरिचित मौन 

इक नया सा भाव गढ़ता है।

मिलन की इस सघनता में,

विरह की है विकलता क्यों?

जो मंजिल एक है अपनी

किनारे दो तरफ़ है क्यों….?

-अन्नु मिश्र

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