जो दिल को चुभ रहा है वो,
नज़र में क्यों नहीं आता?
है बंधन ग़र ये पल भर का
तो क्यों फिर टूट नहीं जाता?
ये आते-जाते मौसम सी,
वफ़ाओं की
कशिश सी खींचती है जो,
कसक बन जा
अभी थे साये में जिनके,
गुज़रते आ
वो साया हट रहा तो फिर,
ये संग क्यों छूट नहीं जाता
जो दिल को चुभ रहा है वो,
नज़र में क्यों नहीं आता?
-अनु मिश्र
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